लूट कर चमन वो मेरा, पूछते हैं गुल कहाँ,
दीन-ओ-धर्म के नाम पर रूहें हुईं फ़ना फ़ना...
कौन किसके दर पे जाए, साज़िशें बिकती यहाँ,
लाचार, जर्जर हो चुकी है सबकी आत्मा यहाँ...
ना बंदगी तेरी बड़ी, ना मेरी कोई प्रार्थना...
जो है बड़ा सबसे यहाँ, उस रब को जाता कारवां...
आओ झुकाएं सर के फिर, रूहें हुईं फ़ना फ़ना...
- Boltisyaahi 🖋