Thursday, December 14, 2017

रेंगती सिसकियाँ



पहले रेंगती किसी की सिसकी
फिर रेंगती न्याय को चीखें
दम तोड़ती अर्ज़ियाँ कितनी
होते सवेरे बड़ी देर में।

देर में जगते मान हैं सबके
माया में ईमान हैं बस्ते
रावण को जलाते देश में
क्यों इतने हैवान हैं बस्ते।


कुछ दोष है यह संसार का
कुछ गुनाह है लाड- प्यार का
माँ जो पुरुष की जननी है
पहले वो नारी जन्मी है

क्यों है बख़्शती उस पापी को
जो करता अत्याचार
कभी करता बलात्कार
पोषण में न मिले संस्कार
तो बुद्धि में होता विकार।

माँ का धर्म सृजन ही नहीं
काली का भी है अवतार
हाँ उसका है यह अधिकार
ऐसे पूत कपूत का करदे वो खुद ही संहार।

हाँ करदे माँ खुद ही संहार
फिर न होगी चीख पुकार
न कोई बेटी लाचार
बदल जायेगा यह संसार
जब नारी करेगी नारी से प्यार।

फिर शाम की देरी न होगी
हर कलि बेख़ौफ़ खिलेगी
माथे की शिकन न होगी
माँ की सीख दुरुस्त जो होगी।

नारी तो एक वो भी है
जो खुद न्याय की देवी है
उसका भी खंडन हैं करते
भ्रष्टाचार से पलड़ा भरते
रात करें वो काले धंदे
होते फिर सवेरे अंधे

खुद के घर जब आंच न आये
न समझे कोई पीर पराये
मतलब की इस भीड़ भाड़ में
हाय मर गए खुदा के बंदे
न रहे वो राम के बंदे।


 बलात्कार भारत में महिलाओं के खिलाफ चौथा सबसे आम अपराध है
 नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, 2012 में 24,923  और 2016  में 38,947 बलात्कार के मामले पूरे भारत में दर्ज किए गए थे। इनमें से 98% मामलों में अपराधी पीड़ित के जानकार ही थे। भारत में हर दिन औसतन 92 महिलाओं पर बलात्कार किया गया और राष्ट्रीय राजधानी में करीब 1636 मामले दर्ज हुए। तकरीबन हर छह मिनट में एक रेप की घटना दर्ज होती है।
यह तो वो मामले हैं जो बताये गए पर जाने कितने ऐसे केसेज़ हैं जो न कभी सामने आये और न ही आएंगे पर अगर आ भी गए तो ये बेईमानी भीड़ जिसे हम सोसाइटी कहते हैं क्या उखाड़ लेगी? 


जो भी महिला मेरा यह लेख पढ़ रही होंगी अगर मैं आपसे पूछूँ की क्या कभी आपके साथ कोई छेड़ छाड़ या शोषण हुआ? क्या कभी आपको उस मेन्टल हरैस्मेंट से गुज़रना पड़ा?
सड़क पे कभी बाज़ार में कभी बस या ट्रैन में हम महिलाएं बचपन से ही रोज़ ऐसी जाने कितनी बद्तमीज़ियां बर्दाश्त करती है। इस भीड़ के सामने ही कभी कोई हाथ मार के निकल जाता है कभी कमैंट्स पास कर जाता है पर मजाल है गांधीजी के इन बंदरों की जो आगे बढ़कर ख़िलाफ़त करें यह सामाजिक भीड़ के बन्दर न तो बुरा देखते हैं न सुनते हैं न बोलते हैं क्यूँकि  मनुष्य की यह  प्रजाति अपनी बिरादरी की कभी सगी न हो सकी।


इन सब हालातों में जो हर आम लड़की हर रोज़ ऐसे बद्ज़ातों की वजह से जिस मानसिक पीड़ा से गुज़रती है वो एक औरत जात ही जानती है जी हाँ जानती हैं क्यूँकि  अगर समझती तो आज औरत की स्थिति ऐसी न होती। सिर्फ बलात्कार ही नहीं ईव टीज़िंग भी एक बहुत बड़ा मुद्दा है पर इस पर बात करे कौन? सिर्फ छेड़ के तो जाते हैं उठा कर ले जायेंगे या रेप करेंगे तब बड़ी बात होगी हमारे परिवार भी हमें ऐसी बातों को छोटी बताकर नज़रअंदाज़ करना सिखाते हैं।
 

यह कैसा पैमाना है और किस तरह तय कर लिया जाता है की आत्मसम्मान को कितनी ठेस पहुंचती है ऐसे अपराधियों की वजह से? अपनी तरफ से जब मैंने कुछ महिलाओं और लड़कियों से बात की तो सब पीछे हट गयीं की छेड़ते तो हैं पर हम किसी से कोई शिकायत नहीं करेंगे हमें शर्म आती है बदनामी होती है लोग क्या कहेंगे ऐसी बातों के जाल में फसकर बैठी रहती हैं।ये सवाल मुझे हमेशा कचोटता है की कैसे हमारा मन मान जाता है ऐसी बातों पर खामोश रहकर बिना लड़े बिना शोर मचाये और क्यों बार बार हम ऐसे घिनौने जानवरों को अगला मौका देकर खतरनाक बनाते हैं?

जो नेता या कुछ रूढ़िवादी लोग ये कहते हैं की छोटे कपड़े पहने होंगे, लड़कियां बाहर निकलती ही क्यों हैं या लड़की की ही गलती होगी ऐसे महानुभावों से मैं पूछना चाहूंगी की यह वहशी दरिंदे न तो १०० साल की बूढ़ी महिला को छोड़ते हैं न १ साल की बच्ची को। 


इन मामलों में किसी छोटी बच्ची या बुज़ुर्ग महिला का क्या ढकवायेंगे और क्या कपड़े पहनाएंगे? निर्भया रेप केस ने पूरे देश को हिला दिया था याद है मुझे कितनी रातें मैं सो नहीं पायी थी यह सोच के की किस असहनीय पीड़ा से वो बेचारी गुज़र रही होगी। कहाँ है भगवन?क्यों नहीं आये उसे बचाने? पर सत्य तो यही है की चमत्कार नहीं होते न क़यामत आती है।अपने अपने भगवान् के ठेके लेके कुछ बाबा बैठे तो हैं चमत्कार दिखाने। मीडिया ने ये मुद्दा उठाया तो चर्चित हुआ आंदोलन हुए कैंडल मार्च हुआ और आला अफसरों पर, सरकार पर दबाव बड़ा तो थोड़े हाथ पैर चले और काम हुआ पर ऊंचे पद पर बैठे क्या समझेंगे किसी और की बेटी की दर्द की गहरायी को।

निर्भया केस से पहले और उसके बाद भी रूह कंपा देने वाले अपराध हुए हैं और हो रहे हैं



  • इमराना रेप केस
  • जल गाओं रेप केस
  • अजमेर रेप केस
  • मथुरा रेप केस - महाराष्ट्र के चंद्रपुर ज़िले में 15 साल की मथुरा नाम की बच्ची के साथ दो पुलिसवालों ने पुलिस कंपाउंड में रेप किया।
  • बहराइच रेप केस
  • 2011 भंवरी देवी केस
  • 2013 मुंबई रेप केस
  • वेस्ट बंगाल की नाडिआ डिस्ट्रिक्ट का 2015 का रेप केस जिसमे 71 साल की बुज़ुर्ग महिला का 8 आदमियों ने रेप किया।
  • Oct.2017-हाल ही में पिछले महीने मेरठ के एक गांव की शर्मसार करने वाली दरिंदगी हुयी 100 साल की बिस्तर पे पड़ी बीमार बूढ़ी अम्मा का एक 35 साल के आदमी ने बलात्कार कर दिया।





  • तमिल नाडु का वचथि गांव का 1992 का केस जिसमें कितने सारे पुलिस कर्मी और वन अधिकारी शामिल थे वहां की महिलाओं का सामूहिक बलात्कार करने में।                                                       कितनी बार सुना गया है की जब कोई रेप पीड़िता रिपोर्ट दर्ज कराने गयी तो पुलिसवालों ने उसे एक मौका समझकर अपना वहशीपन दिखाया की रेप तो हो ही गया है चलो हम भी थोड़े मज़े ले लें.इतनी ज़लील ज़ेहनियत लिये कितने ही लोग सिस्टम से जुड़े हुए हैं क्या वाकई लोकतंत्र है? अगर है तो क्यों सभी सत्ताधारियों पर से भरोसा उठ रहा है ? जब सिस्टम ही भ्रष्ट हो जाए फिर किस्से मदद मांगे?

इसीलिए मैंने अपने लेख में संस्कार की बात की है क्यूँकी एजुकेशन ही सिर्फ मायने नहीं रखती ज़रूरी है नीयत का और मानसिकता का साफ़ होना जो घर परिवार के परिवेश और परवरिश  से मिलती है फिर चाहे हम किसी भी प्रोफेशन में हों देश का और समाज का भला ही करेंगे।
वो ज़माना तो रहा ही नहीं की लड़की के जवान होने का डर हो पैदा होते ही वो सिर्फ एक सैक्स ऑब्जेक्ट के तौर पे देखी जाती है। 




लड़की न मिले तो छोटे लड़कों या किशोरों को उठा लिया  जाता है।
  • 2016  NCRB के डाटा के अनुसार  हर साल बच्चों पर यौन शोषण के मामले बढ़ते जा रहे हैं     
  •  हाल ही में पिछले महीने नवम्बर में दिल्ली के एक स्कूल का चौंकाने वाला केस सामने आया साढ़े चार साल के बच्चे ने अपनी ही क्लास में पढ़ने वाली बच्ची का यौन शोषण किया अब इसमें न तो उस बच्चे का कसूर है न उस बच्ची का क्या देखा होगा उस बच्चे ने ऐसा? क्या समझा होगा जो ऐसी हरकत कर डाली जिस उम्र में पेंसिल से उसे सारे शब्द भी लिखने नहीं आते उस ही पेंसिल से घिनौने कार्य करना सीख गया
  • अभी इस बात को सुनकर हम चौंके ही थे की दूसरी घटना ग़ाज़ियाबाद  के एक स्कूल की सामने आ गयी जिसमें पांचवीं कक्षा के छात्र ने कक्षा दो में पड़ने वाली छात्र के साथ घिनौनी हरकत की
रेप होना तो जैसे बड़ी ही आम बात होती जा रही है इस पर खूब लिखा और बोला जाता है पर मसला तो जैसे का तैसा ही है या ये कहें की भयानक हो गया है अब और भी भविष्य का दर्पण जो बालपन में ही बच्चे वयस्क हो चले हैं,अपराधिक प्रवत्ति बढ़ती जा रही है और मानवता ख़तरे में है। 
सन 2003 में जहाँ 466 किशोरों के खिलाफ दुष्कर्म के मामले दर्ज हुए थे वहीँ 2015 में आंकड़ा 1690 तक पहुंच गया
निर्भया केस में भी सबसे ज़्यादा दरिंदगी उस नाबालिग लड़के ने ही की थी जो अब अपनी सज़ा काट के बरी हो चूका है। और खतरा बढ़ता जा रहा है क्यूँकि उसके जैसे जाने कितने किशोर ग़लीज मानसिकता लिए घूम रहे हैं और अब यह वायरस बच्चों के मस्तिष्क में घुस चूका है जो चेतावनी है आने वाले काल के कलंकित रूप की। 

इंसाफ का तराज़ू,प्रतिघात, बैंडिट क़्वीन लज्जा,अंजाम,जागो,दामिनी,काबिल,पिंक ये वो फिल्में हैं जो समाज के एक सामान्य और डरावने सत्य को दर्शाती हैं जिन्हे देखने के बाद दिल में डर और दिमाग में चिंता बैठी रह जाती है

 

कभी कोई टीचर रेप करदेता है कभी कोई चाचा देवर बाप या ससुर कोई मामा या भाई कहीं पती दोस्तों के साथ मिलकर बलात्कार करता है किशोर क्रूरता पे उतर आये हैं और बच्चे मलिनता में घिरते जा रहे हैं हर रिश्ता खण्डित हो चूकावजह इंटरनेट,टेलीविज़न,फिल्मों में खोजें,सभ्यता और जीवनशैली में खोजें, सख्ती और कड़े कानून के अभाव में खोजें या ये कहें की अब मानव के शुक्राणू इस भेस में जन्म लेंगे शर्म, वहशीपन ,दरिंदगी या कोई भी घटिया गाली इस्तेमाल कर ली जाए इन अपराधों को बयां करने के लिए हर शब्द कम हैये सब चलता आ रहा है हम सुनते आ रहे हैं और ख़बर की तरह अगली शाम भूल जाते हैं क्यूँकि फर्क तब ही पड़ता है जब अपनी ज़िन्दगी में उथल पुथल मचती है
ऐसे पापियों को सबक सिखाने के लिए कड़े कानून कब लाएंगे?क्यों इतना ढीला और सुस्त रवैय्या हर बार अपनाया जाता है।जल्द से जल्द कार्यवाही और कड़ी जांच के बाद तुरंत मौत की सज़ा  का प्रावधान होना चाहिए वो भी सबके सामने ताकि ख़ौफ़ बना रहे
तो क्या कहें ?किसे दोष दें? किस ओर जा रहा है ये समाज? 

 बहुत ही गौरवशाली ,बलशाली, महाबली ,महापुरुषों और ज्ञानियों का देश  है मेरा पर अफ़सोस  की चेतना ही मर गयी है।

अब सोचिये की इतिहास पर गर्व करें, भविष्य से डरें या आज का ग़म करें क्यूँकि..... इन सिसकियों से मन सिहर उठता है।

 
























































Saturday, December 2, 2017

हाँ वही 'तू' जो था कभी इन्सां








एक इन्सां  बनाया था मैंने ऐ धरती तेरे पालन पोषण के लिए
जाने कहाँ गुम हो गया और  जीने लगा शोषण के लिए
कभी तेरा तो कभी मेरे नाम का करके बहाना
करता रहा मनमानी इस कदर जीने के लिए


ये धर्म -जात -ऊंच -नीच के जाल बुनता गया

और खुद ही फँस गया इनमें जलने के लिए.

मोहब्बत जो बनायी वो भेद भाव में दफ़्न हो गयी
कभी मुझे पत्थर बना दिया तो कभी तुझ पर पत्थर डाल  दिया
जब यह भी लगा कुछ कम है तो.........
फिर कभी मेरे नाम तो तेरे नाम का करके बहाना

कितना ख़ून बहा दिया.






यह सब भी कितने अजीब हैं की पूछते हैं मुझसे
तू मेरा अल्लाह है या भगवान
फिर मुझे मुझसे ही अलग करके पूछते हैं
बता क्या है तेरा नाम

क्यों मुझको है तू
काटता
जात- धर्म में छाँटता




कभी मेरी मूरत तो कभी तस्वीर बनाकर
दिल में रखे बैर मेरी ही परछाँई के लिए.

मैं तुझमें ही तो बस्ता था बन के लहू एक रंग का
न मैं सिक्ख, न इसाई,न हिन्दू न मुसलमां
"मैं तो कबसे तू ही था
हाँ वही तू जो था कभी इन्सां"

आ लूट ले मुझको और तबाह कर
न मैं तेरा अल्लाह, न तेरा भगवान् 


तेरी ही ये सूरत है तेरा उजड़ा गुलिस्तान





बस आगे बढ़ और क़त्ल कर
ले रौंद ले मुझको सर चढ़कर
कभी तेरे समाज कभी रीति रिवाज़ का करके बहाना

न तुम जिए न वो जिए
इस क़दर...................

चुन-चुन के हैं तूने मेरे टुकड़े किये......................