Saturday, January 22, 2011

Ye Bhi Kya Bebasi

बाग़  में  यूँ   ही  चलते -चलते,  पाँव  के  नीचे  घांस  आ  गयी ,
कहने  लगी  -हमें  मत  रोंदो  कुछ  हमारे  भी  अरमान   हैं .
फिर  अचानक  चली  हवाएं  उड़ने  लगा  दुपट्टा  मेरा ,
कहने  लगा  मुझे  मत  थामो  उड़ने  दो  खुले  आसमान  में .
डाल  पे  जब  भी  झूला  डाला , पेड़ो   ने  भी  साथ  न  दिया ,
बोले -बाहें  थक  जाएँगी ,बैठी  कोयल  उढ़  जाएगी ,
कहने  लगे  की  देदो  हमको  चैन  थोड़ा  उपकार  में .

फिर  मैंने  एक  फूल  को  देखा  तोड़ने   को  उसको  सोचा ,
वहां  भवरा सुना रहा था  उसको  एक  मधुर  संगीत .
जब  तोड़ने   को  हाथ  बढ़ाया -बोला  फूल - न  छूना  मुझको ,
येही  तो  मेरी  ज़िन्दगी  का  सबसे  मधुर  गान  है  बस......  "यहीं  हमारी  जान  है ."

हार  के  फिर  मैं  बैठ  गयी  चमचमाती  धुप  में ,
सूरज  बोला - न  आओ  आगे  देने  दो  पोषण  पौधों  को .

तन्हाई   शमशान  ले  गयी ..
वहां  जो  चाहा  रोना  हमने  मुर्दों  को  भी  गिला  हो  गया .
कहने  लगे - के  सोने  दो 
सिस्कियाँ  न  भरो  क़ब्रिस्तान  में ............................................ 

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