बेगानी शादी के हम दीवाने दिल खोल कर नाचना गाना,पीना पिलाना और फिर खाना पसंद करते हैं। खाना अपने घर के फंक्शन का हो या किसी और की पार्टी का लज़ीज़ पकवानों से सुसज्जित जी ललचाता अपनी ओर खींच ही लेता है और इस ही खींचा तानी में बिगड़ जाता है बैलेंस कभी जेब का तो कभी प्लेट का।
आइये स्वागत है आपका शादियों के इस मौसम में। रीति रिवाज़ों से लेकर मेहमानों की ख़ातिरदारी तक,संगीत से लेकर बिदाई तक,कॉकटेल से लेकर बारात के स्वागत तक हर चीज़ आज एक प्रेस्टीज बन चुकी है।एक मिडिल क्लास भी 4 से 5 लाख रुपये सिर्फ केटरिंग में खर्च कर देता है इसके बाद भी सबको सबकुछ स्वादिष्ट नहीं लगता मीन मेक निकल ही जाते हैं।
चाहे कोई भी फंक्शन हो आपको आजकल मेन्यू में तरह तरह के डिशेस मिलते हैं मेहमानों के आगे परोसने के लिए पर क्या कभी आपने सोचा है तमाम दिखावा करके और इतना खर्चा करके कितनी वैराइटीज़ लोग चख पाते हैं उसकी आधी भी नहीं। इंडियन,इटालियन, चाइनीज़,कॉन्टिनेंटल,थाई,मुग़लई,अमेरिकन,मेक्सिकन जैसे ढेरों कुइज़ीनेस में से कम से कम 5 -7 डिशेस भी ले लें तो 40 -50 डिशेस हो गयीं इसके अलावा साइड स्नैक्स,स्वीट्स, ड्रिंक्स इतने फ्लेवर्स की आइसक्रीम्स फिर जाते-जाते पान का एक बीड़ा भी मुँह में रखना बनता है। सब मिलाकर 100 से ज़्यादा किस्म के व्यंजन आपके सामने हो जाते हैं उपस्थित। वैरायटी कम क्यों करें सक्सेना जी ने और अरोड़ा साहब ने भी तो कोई कमी नहीं छोड़ी थी आखिर नाक का सवाल है।
कुछ लोग जब किसी की शादी में जाते हैं तो जितने का गिफ्ट या कैश देते हैं उस हिसाब से खाकर आते हैं की "हमने तो 500 का नोट दिया है दो- चार डिशेस और खालो"
चाहे जगह प्लेट और पेट में हो या न हो। कुछ लोग तो ऐसे टूटते हैं खाने पे जैसे आज के बाद नहीं मिलेगा मक़सद ठूसना होता है जिसमें से कुछ बच भी गया तो फ़ेंक देंगे।और दूसरी ओर मेज़बान भी खाने के फिकने से गुरेज़ नहीं करते कोई लंगर या भंडारे का प्रसाद है क्या जिसे छोड़ने से पाप चढ़े इसीलिए शामियाने के बाहर कोई गरीब भिखारी भी आजाये तो उसे भूखा भगा दिया जाता है। इस बात पर शर्म किसी को नहीं आती की अंदर सब भरे पेट वाले इतना खाना प्लेटों में छोड़ रहे हैं।
बचपन में माँ बाप सिखाते हैं प्लेट में खाना छोड़ना बैड मैनर्स होता है।
अक्सर परिवारों में खाने से पहले और खाने के बाद ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया जाता है स्कूल में भी हमने सीखा और आज भी सिखाया
जाता है।

तो फिर सभ्य समाज की पार्टीज़ में ये क्या नज़ारा आप और हम बनाते हैं इतना खाना बर्बाद करके।ये वही दो जून की रोटी है जिसके लिए आप और हम दिन रात मेहनत करते हैं।

कृषि उद्योग के अनुसार आपकी प्लेट तक पहुंचने से पहले ही 40 % अनाज सढ़ जाता है बुरे ट्रांसपोर्टेशन,स्टोरेज और सप्लाई चैन प्रोसेस की वजह से। ये काम तो है सरकार के ज़िम्मे पर हमारी क्या ज़िम्मेदारी है यही की शराब की तो एक बूँद भी बर्बाद न जाए पर खाना वो तो हर वक़्त खाते हैं घर में भी बाहर भी और इतना खाते हैं की बोर भी हो जाते हैं हम सोचते हैं की आज क्या खायें वो सोचते हैं की कैसे कहाँ से खायें पर आज भी हमारे देश का एक तिहाई हिस्सा भुखमरी का शिकार है विश्व भर में 800 मिलियन लोग हर रोज़ भूखे पेट ही सो जाते हैं क़ूड़े के ढेर के पास इस आस में जाते हैं की शायद कुछ इसमें से खाने को मिल जाए।
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ज़रूरत है यह समझने की
खाना बर्बाद करना कोई
हमारा अधिकार नहीं कि हमने उसका पैसा भर दिया फिर चाहे छोड़ दो।
यह पूरे राष्ट्र का है इसमें किसान की दिन रात की मेहनत है और कितना अजीब है की जो किसान हमारे लिए अनाज बोता है वो आज भी खाली पेट भूखा सोने पे मजबूर है,साथ ही क़र्ज़ की वजह से आत्महत्या करने पर विवश है।
जर्मनी में ये कानून है की अगर किसी रेस्टोरेंट में भी आर्डर करके आपने फ़ूड वेस्ट किया तो आपको पेनल्टी लगेगी।
फ्रांस पहला ऐसा देश बन चूका है जिसने सुपरमार्केट्स और फ़ूड रिटेल चेन्स में बचा हुआ अनसोल्ड फ़ूड फेकने पर बैन लगाने का काम किया है इसके लिए फ़ूड बैंक्स बनाये हैं या चैरिटीज़ में खाना डोनेट कर दिया जाता है ऐसा न करने पर पेनल्टी देनी होती है।
तो क्या हर बात पे हमें कानून के डंडे की ज़रूरत है हर बात पे कोई हाँके तभी हम सुधरेंगे।
हमारे इंडिया में भी कुछ बड़े शहरों में लोग शादी या फंक्शन के बाद बचा हुआ खाना अनाथालयों,
NGO में भिजवा देते हैं या गरीबों में बटवा देते हैं।
Feeding India....Robin Hood Army...Let's Spread Love.....Gift A Meal In India ऐसी बहुत सी आर्गेनाईजेशन हैं जो वेस्ट फूड इकट्ठा करके ज़रूरतमंदों को देती हैं।
'Dont Waste Food' आजकल कुछ वैडिंग इनविटेशन पर ये भी लिखा जाने लगा है।
नोटबंदी के दौरान याद होगा आपको गुजरात के सूरत शहर में एक जोड़े ने कैश न होने की वजह से चाय पानी ही पिलाया अपने मेहमानों को, अब ये भी मुमकिन नहीं है की सिर्फ चाय पानी ही हर कोई पिलाये क्यूंकि शादी किसी त्यौहार से कम नहीं हमारे देश में पर हम सीमित डिशेस और क्वांटिटी रखके एक ट्रैंड शुरू कर सकते हैं।
और सबसे बड़ी बात जिस दिन आप खाने को अन्न के एक एक दाने को प्रसाद समझ कर खाएंगे और किसी को खिलाएंगे उस दिन न आपका बजट बिगड़ेगा न पेट न बर्बादी होगी खाने की न ही कोई गरीब भूखा मरेगा।
दाने दाने पे लिखा तेरा नाम है
यह कैसा विधि का विधान है
न जाने कितने भूखे पेट 'संतोषी' से मर जाते हैं
महफिलों में अक्सर रह जाते जूठे पकवान हैं ।
