एक ऐसा दिन जिसे किसी ख़ास डे की तरह याद करने की ज़रूरत नहीं है। यह तो रोज़ होता है शरीर की एक ज़रूरी प्रक्रिया है शौचालय में जाना पर कितने लोगों को आज भी यह सुविधा मिली हुयी है क्या आप जानते हैं?बहुत से लोगों को तो पता भी नहीं की विश्व शौचालय दिवस भी होता है 19 नवंबर को। आज तो मैं भी भूल गयी थी सुबह का अख़बार पढ़ा तो कुछ कहीं था ही नहीं ये तो भला हो सोशल नेटवर्किंग साइट्स का की देख लिया आज "वर्ल्ड टॉयलेट डे" है।
अभी अभी तो अक्षय कुमार और भूमि पेडनेकर की फिल्म आयी थी टॉयलेट एक प्रेम कथा तो भी लोग भूल गए इतना महत्वपूर्ण दिन। ओह ! हाँ फिल्म हिट नहीं हुयी शायद सबके दिमाग में कोई फालतू की अंरेयलिस्टिक एक्शन या रोमांटिक फिल्म होती तो खूब याद होती इस भीड़ में मैं भी शामिल हूँ क्यूंकि आदत में शुमार है वैलेंटाइन डे या फ्रेंडशिप डे मनाना। हम और आप जैसे जिन लोगों को बचपन से ही शौचालय की सुविधा मिली हो वो कैसे जान पाएंगे की यह समस्या भारत में बहुत बड़ी और चिंताजनक है। क्रिकेट के खेल में भारत पाकिस्तान को जब हराता है तो खूब उछलते और ख़ुशी मनाते हैं आप पर क्या आपको पता है साफ़ शौचालय के मामले में भारत से आगे है पाकिस्तान :)
आज भी देश के 58% लोग खुले में शौच करते हैं। विश्व भर में 260 करोड़ लोगों के पास स्वच्छ सुविधाजनक शौचालय की व्यवस्था नहीं है। इन सब में सबसे ज़्यादा दिक्कत होती है महिलाओं और बच्चियों को। कितनी ऐसी गरीब लड़कियां हैं जो स्कूलों में शौचालयों के न होने की वजह से अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाती हैं। साथ ही साथ छेड़ छाड़ व बलात्कार जैसे घिनोने हादसों से भी रोज़ गुज़ारती हैं।
"अँधेरा होने का इंतज़ार करती हैं वो आँखें
जिन्हे घर की रौनक कहा जाता है
खुले में शौच जाने को मजबूर माँ बेटियों को
घूंघट से शर्म का पाठ पढ़ाया जाता है "
आपने अगर टॉयलेट फिल्म नहीं देखी है तो ज़रूर देखिएगा कैसे उसमें सच्चाई और लोगों की सोच दिखाई गयी है। सत्य घटना पर आधारित कैसे साल 2012 में प्रियंका भारती नाम की एक बहू खुले में शौच की वजह से शादी के अगले दिन ससुराल छोड़ कर आजाती है अपने इस क़दम से प्रियंका ने न केवल अपने लिए बल्कि गांव की और महिलाओं के लिए भी शौचालय का निर्माण कराने का काम किया। इसीलिए मैं हमेशा यह मानती हूँ किसी भी तरह का कहीं का भी स्वच्छ अभियान हो पहले ज़रूरत है सोच को स्वच्छ करने की और जागरूक होने की। खुले में शौच करना न सिर्फ बीमारियों का कारण है बल्कि इससे एक स्त्री के मान सम्मान को भी ठेस पहुंचती है। चाहे सुरक्षा कारण हो या शर्म यह अधिकार की बात है।
सुलभ शौचालय का नाम तो आपने सड़को पर हर शहर और गाँव में देखा ही होगा यह एक इंटरनेशनल सोशल सर्विस आर्गेनाईजेशन है जिसकी नीव डॉक्टर पाठक ने 1974 में बिहार में रखी थी। इस संस्थान से करीब 50,000 स्वयंसेवक जुड़े हुए हैं।
Dr. Bindeshwar Pathak

The Great Man Behind this Reform
Sociologist, social activist, and Founder of Sulabh Sanitation. Dr. Pathak believes the toilet is a tool for social change.
भारत के प्रधानमंत्री द्वारा चलाया गया स्वच्छ भारत अभियान यह भी एक अहम मुद्दा है जिसकी पहल हमें और आपको ही करनी होगी।एक तरफ टॉयलेट न होने की समस्या और एक समस्या यह कि सार्वजनिक शौचालय कितने साफ़ रहते हैं चाहे ट्रैन हो या कोई भी पब्लिक प्लेस। ज़्यादातर तो यह सोच के इस्तेमाल करने के बाद बिना साफ़ करे चले जाते हैं की अब तो हमें जाना नहीं यहाँ जो भी आये हमें क्या। अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता। पर ऐसा करते वक़्त लोग यह नहीं सोचते की इस सोच की वजह से ही तो गंदगी हर तरफ इतनी ज़्यादा है फिर नाक मुँह बनाकर हम दुसरे को गलत ठहराते हैं।
"अब खुले में शौच नहीं
लोटा बाल्टी और नहीं
इज़्ज़त घरों का करो निर्माण
खुद को दो सुरक्षित सम्मान "।
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