Monday, March 12, 2018

महिला सशक्तिकरण सिर्फ एक सोच !




अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस भी हो गया और महिलाओं पर क़सीदे भी पढ़ लिए पर महिला सशक्तिकरण है क्या ?
क्या सही मायने में हम और आप इस बात को समझते हैं।
या इस बात पर ही कॉम्पीटीशन कर रहे हैं की महिलाएं बेहतर हैं या पुरुष। सच तो यह है की अपने-अपने स्तर पर दोनों को ही विभिन्न भूमिका विधाता ने सौंपी है। नारित्व को कितना सजग करें या पौरुष को कितना संयम दें। क्या ज़रूरी है ?
जिस तरह हर प्राणी एक दुसरे से अलग है वैसे ही सृष्टि का भी यही फलसफा है अलग परन्तु मिलकर संसार को चलाना। अपने कार्य करने के अलावा एक दूजे का हाथ बटाने में,सम्मान देने में एहम आ जाए तो नियंत्रण से चीज़ें बाहर हो ही जाएँगी।



 इसमें न तो सिर्फ शिक्षा के आभाव को दोष दे सकते हैं न ही किसी प्रकार की जागरूकता को। वजह क्या है? की कुछ महिलाएं ज़बरदस्ती ही पुरुषों से तुलना में उनके जैसा बनने में लगी हैं
और कुछ पुरुष अपने मर्द होने पर औरतों को नीचे दिखाने और  उन्हें कमज़ोर साबित करने में लगे हुए हैं।
तो मेरे हिसाब से महिला सशक्तिकरण उन लोगों को समझना ज़रूरी है जो सम्मान करना नहीं जानते चाहे खुद का हो या दुसरे किसी भी जैंडर का।

Women Empowerment का मतलब है महिलाओं का अपनी पहचान बनाना,जागरूक होना, अपने अधिकार के लिए आवाज़ उठाना, अपना आत्मविश्वास बढ़ाना और सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत करना।



मेरा हमेशा से ही यह मानना रहा है की औरत ही औरत को दबाती है। जिन पुरुषों को हम दोष देते हैं की वो अपनी बहन,बेटी,पत्नी या महिला सहकर्मी की इज़्ज़त नहीं करता ये फितरत यूँ ही नहीं आजाती उनमें। बचपन से ही अपनी माँ की बेबसी,पिता द्वारा अपमान,घर की औरतों की चुप्पी या परदे की शर्म को देखते आये होंगे तभी औरत की झुकी नज़र को उसका नीचे दर्जे का होना ही मान लेते होंगे।



अजीब यह भी है की जिन महिलाओं को सारे अधिकार मिले हुए हैं जो खुद क़ाबिल हैं वही समझती हैं सशक्तिकरण का अर्थ पर ये शब्द और मुहिम जिन महिलाओं के लिए है वो आज भी दबी कुचली ज़िन्दगी जीने की ग़ुलाम हैं।

बहुत सी सरकारी योजनाएं और कार्यक्रम,सहूलियतें शुरू तो की गयी हैं,फायदे भी हुए हैं जागरूकता भी आयी है और कुछ के चेहरों पर मुसकान भी।



फिल्म्स बनती हैं,नारे लगते हैं,भाषण होते हैं पर अफ़सोस की असल ग्राफ कुछ और ही बयान करता है। तो फिर कैसे बचाया जाए इस सम्मान को? शुरुआत सिर्फ और सिर्फ हम अपने घर से कर सकते हैं।   
इसीलिए पोषण अगर सही न हो तो हानि तो होगी ही। हर एक परवरिश से परिवार और फिर समाज बनता है एक ग़लत सीख पूरे समाज को खतरे में डाल देति है।

पहले तो हर महिला को खुदको कमतर आंकने का दृष्टिकोण बदलना चाहिए।
एक माँ पहले महिला है तो अपनी बेटी को भी सशक्त बनाये उसे जागरूक विचारधारा देकर उसे उड़ना सिखाये तो बेटे को उसका पंख बनाये की दोनों अधूरे हो एकदूजे के बिना।


हर माँ अपने बच्चे को ग़लत बात पर कान पकड़कर सही राह दिखाएगी तो प्रयास आसान होंगे क्यूंकि सशक्त तो दूसरा मुद्दा है पहले तो सुरक्षा ज़रूरी है महिलाओं की।

Women Empowerment कोई बड़ी बात नहीं मैथ्स का कोई डिफिकल्ट फार्मूला नहीं जिसे सॉल्व करने में दिमाग की इतनी कसरत की जाए। सब कुछ बड़ा ही सरल है पर सदियों की जो रूढ़िवादी  जड़ और शाखाएं हैं इतनी मज़बूत हो चुकी हैं कि आसानी से पीछा नहीं छोड़ेंगी।
जिस दिन हर बेटे और बेटी को सही परवरिश,मौके,सही शिक्षा एवं रोज़गार, चुनने की आज़ादी,ग़लत पर ना कहने की हिम्मत, फॅमिली का सही दिशा में सपोर्ट और मान मिलेगा उस दिन कोई महिला न बेचारी होगी न हारेगी। क्यूंकि बेटे और बेटी का सही पोषण हुआ होगा। महिला और पुरुष दोनों जब एक दुसरे का सत्कार करेंगे तब ही ये मुमकिन हो पायेगा। वरना इस दबाव के चलते महिलाएं खुद को साबित करने में ही लगी रहेंगी खुद के प्रति हीन भावना लिए और दूसरी तरफ कुछ महिलाएं कानून का फायदा उठाकर किसी पुरुष को बेवजह अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करेंगी।


पर यहाँ भी एक शर्त है की महिला को महिला की दोस्त बनकर उसका हर क़दम पर साथ देना होगा क्यूँकि ये जो चार लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे वाले समाज में तीन तो महिला ही होती हैं जो बातें बनाती हैं और जब किसी महिला का साथ देने की बात आती है तो चुप्पी साध लेती हैं।
हैरत होती है की क्या हम औरतें अलग जीव हैं जो हमारे प्रति इतना भेद भाव है हाँ वाक़ई हमें नज़र झुकाने की ज़रूरत है क्यूँकि शर्म की बात है की हमें अपने अधिकारों के लिए आज भी लड़ना पढ़ रहा है।  

सिर्फ नारी ही समाज को सशक्त कर सकती है और खोखले समाज का अपने अस्तित्व का पतन होने से बचा सकती है। जिस दिन एक सास अपनी बहू को पुत्र की जगह पुत्री होने का आशिर्वाद देगी उस दिन हो जायेगा महिला सशक्तिकरण।





 

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