ख़ूबसूरत पड़ोसी यादें
कभी अचानक खटखटा जाती हैं
कुछ लमहों के दरवाज़े
की कोने में रखे एहसास खिल जाते हैं
घर की वो खिड़की जो तेरी एक मुस्कुराहट पे खुल जाती थी
आज भी तेरे हसने के अंदाज़ सी खड़कती रहती है।
ख़ूबसूरत पड़ोसी यादें
जब बहती चली आती हैं फ़िज़ाओं के साथ
महक जाती है चौखट भी
किसी ग़ुलाब की तरह
हाँ उस ही ग़ुलाब की तरह जो ज़ुल्फ़ों में तुम लगाती हो
होठों पे नज़र आता है
शर्माती हो तो गालों पर
रो दो तो रंग नैनों में उतर आता है।
ख़ूबसूरत पड़ोसी यादें
आईने सी आकर अक्स दिखाती हैं
कभी तुझको कभी खुद को देखा करता हूँ मैं
धुंधली सी वो शीशे पर चिपकी धूल
तेरी बिंदिया चूड़ी की बातें कर चिढ़ाती है।
ख़ूबसूरत पड़ोसी यादें
बंद डिब्बे में शक्कर सी पड़ी हैं
तेरे हाथों का स्वाद
रसोई में रखे बर्तनों पर भी चढ़ा था
मसाले दानी की कहानी
बरनी को धूप सी लगाती है।
ख़ूबसूरत पड़ोसी यादें
टकटकी लगाए छत पर
गिनती हैं तारे आज भी
टिमटिमाती जलती बुझती
जुगनू सी सपने लेकर
हक़ीक़त के अंधेरों से निकलकर
हाथ थाम चांदनी का
ले जाती हैं चहचहाती हुयी

जहाँ वो दो परिंदे आया करते थे।
ख़ूबसूरत पड़ोसी यादें
आज भी मशरूफ़ियत में
महसूस करता रहता हूँ
बड़ी एहतियात से महफ़ूज़ रखी हैं
संदूक में बालियाँ तेरी
वो रसीद भी है जो पुराने कोट में पड़ी थी
वो तारीख़ लिखी
आज भी ज़िंदा कर देती है
तेरी मख़मली ख़ूबसूरत पड़ोसी यादें।
7 comments:
Bahut khubsurat kavita likhi spne
वाह सुंदर काव्य विवेचना।
Thank you so much Irshad for posting here ☺☺
Rhicha ji akhiyo ke jharoko se ye song apki awaaz me sunna chahte hai please record kijye
बेहद ख़ूबसूरत यादों को बड़ी संजीदगी से सँजोया है आपने ...
Thanks a lot Amit ☺☺
Will try ☺
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